नोएडा: प्रदेश के चाइल्ड हेल्थ केयर में सबसे प्रतिष्ठित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट, सेक्टर-30 स्थित चाइल्ड पीजीआई में हालात ठीक नहीं हैं। यहां संविदा पर कार्यरत करीब 250 स्वास्थ्यकर्मी वेतन वृद्धि और अन्य मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गए हैं। हालांकि, आपातकालीन सेवाओं से जुड़े स्वास्थ्यकर्मी इस हड़ताल में शामिल नहीं हैं।
स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि उन्हें पिछले छह वर्षों से वेतन में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं मिली है। इसके अलावा, उन्हें जॉइनिंग लेटर और पीएफ जैसी सुविधाएं भी नहीं दी गई हैं। हड़ताल के चलते अस्पताल की नियमित स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो रही हैं, जिससे मरीजों और उनके परिजनों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
स्वास्थ्यकर्मियों की प्रमुख मांगें
चाइल्ड पीजीआई के सामने धरना दे रहे स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि वे सुदर्शन कंपनी के माध्यम से छह साल पहले संस्थान में कार्यरत हुए थे। नियुक्ति के समय उन्हें हर साल 5% वेतन वृद्धि का आश्वासन दिया गया था। लेकिन छह साल बीत जाने के बावजूद यह वादा पूरा नहीं हुआ है।
अजीत कुमार, जो चाइल्ड पीजीआई में संविदा पर कार्यरत हैं, ने बताया,
“हमें बार-बार आश्वासन दिया गया, लेकिन हमारी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया गया। मजबूर होकर हमें हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा है।”
इसी तरह, श्वेता, एक अन्य स्वास्थ्यकर्मी, ने कहा,
“हमने कई बार एजेंसी और अस्पताल प्रबंधन को पत्र लिखे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यह हमारे अधिकारों का हनन है।”
वेतन वृद्धि और सुविधाओं का अभाव
संविदा पर कार्यरत फार्मासिस्ट सुमित ने बताया कि छह साल से वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
“हमें न तो पीएफ की सुविधा मिल रही है और न ही जॉइनिंग लेटर दिया गया। अगर जॉइनिंग लेटर मिलेगा, तो हमें पता चलेगा कि हमारी सैलरी कितनी है। ऐसे में हम न केवल आर्थिक, बल्कि मानसिक तनाव का भी सामना कर रहे हैं,” सुमित ने कहा।
स्वास्थ्यकर्मियों का यह भी आरोप है कि एजेंसी और अस्पताल प्रबंधन ने उनके भविष्य को लेकर लापरवाही बरती है। जब संविदा कर्मियों ने इस मुद्दे पर बार-बार बातचीत करने की कोशिश की, तो हर बार आश्वासन दिया गया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
हड़ताल से अस्पताल सेवाएं प्रभावित
चाइल्ड पीजीआई में वर्तमान में 140 संविदा स्वास्थ्यकर्मी, जिनमें नर्सिंग स्टाफ, टेक्नीशियन और वार्ड ब्वॉय शामिल हैं, कार्यरत हैं। इनके अलावा 60 स्थायी कर्मचारी भी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
संविदा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण स्थायी कर्मचारियों पर अतिरिक्त काम का बोझ बढ़ गया है। आपातकालीन सेवाओं के कर्मचारी अभी हड़ताल में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन उनकी ओर से भी चेतावनी दी गई है कि यदि मांगें जल्द पूरी नहीं होती हैं, तो वे भी हड़ताल में शामिल हो सकते हैं।
हड़ताल का सबसे अधिक असर अस्पताल में आने वाले मरीजों पर पड़ रहा है। मरीजों और उनके परिजनों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। कई मरीज अस्पताल के बाहर निराश होकर लौटते नजर आए।
स्वास्थ्यकर्मियों की अपील
स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, हड़ताल जारी रहेगी। उनकी मांगें इस प्रकार हैं:
1. हर साल 5% वेतन वृद्धि।
2. सभी कर्मचारियों के लिए जॉइनिंग लेटर जारी करना।
3. पीएफ और अन्य लाभ प्रदान करना।
4. नियमित समय पर वेतन का भुगतान।
प्रबंधन का रुख
अस्पताल प्रबंधन ने स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित होने से बचाने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन हड़ताल को समाप्त कराने के लिए अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
प्रबंधन का कहना है कि संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति बाहरी एजेंसी के माध्यम से की गई है और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए एजेंसी से बातचीत की जा रही है। हालांकि, कर्मचारियों का कहना है कि यह बहाना बनाकर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
आगे की रणनीति
स्वास्थ्यकर्मियों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं की जातीं, तो आपातकालीन सेवाओं के कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल हो जाएंगे। इससे चाइल्ड पीजीआई की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह ठप हो सकती हैं।
समाज और प्रशासन की भूमिका
विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्यकर्मियों की मांगें जायज हैं और प्रशासन को इस मामले में त्वरित कदम उठाने चाहिए। स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी समाज का आधार होती हैं, और ऐसे में स्वास्थ्यकर्मियों का असंतोष पूरे तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
मरीजों और उनके परिजनों ने भी प्रशासन से अपील की है कि वे इस समस्या का शीघ्र समाधान करें ताकि स्वास्थ्य सेवाएं सामान्य हो सकें।
चाइल्ड पीजीआई में स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल ने एक बार फिर संविदा कर्मियों के अधिकारों और उनकी स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता, तब तक अस्पताल की सेवाएं प्रभावित होती रहेंगी।
इस मामले में एजेंसी और प्रबंधन के साथ-साथ प्रशासन की भूमिका भी अहम होगी। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्वास्थ्यकर्मियों को उनके अधिकार मिलें और मरीजों को बेहतर सेवाएं प्राप्त हों।